नीरज वोरा: बॉलीवुड के वो ‘खिलाड़ी’ जिन्होंने हंसी के पीछे छिपा लिया अपना दर्द

परिचय (Introduction)

भारतीय सिनेमा जगत में कुछ ऐसे कलाकार होते हैं जो पर्दे के पीछे रहकर भी अपनी कला की अमिट छाप छोड़ जाते हैं। नीरज वोरा एक ऐसा ही नाम थे – एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी फिल्म निर्देशक, लेखक, अभिनेता और संगीतकार। गुजरात की धरती से निकलकर उन्होंने बॉलीवुड में अपनी एक खास पहचान बनाई, खासकर अपनी बेमिसाल कॉमेडी टाइमिंग और यादगार किरदारों के लिए। ‘रंगीला’ जैसी फिल्म के लेखक के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले नीरज ने ‘खिलाड़ी 420’ और ‘फिर हेरा फेरी’ जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया। उनकी कलम ने ‘हेरा फेरी’ फ्रेंचाइजी, ‘गरम मसाला’, ‘भागम भाग’, ‘गोलमाल: फन अनलिमिटेड’ और ‘भूल भुलैया’ जैसी कई सुपरहिट कॉमेडी फिल्मों को जीवंत किया। एक अभिनेता के रूप में भी ‘मन’, ‘हैलो ब्रदर’, ‘खट्टा मीठा’ और ‘बोल बच्चन’ में उनके काम को सराहा गया। लेकिन चमक-दमक भरी इस दुनिया के पीछे एक ऐसा कलाकार भी था, जिसने अपनी बीमारी से एक लंबी लड़ाई लड़ी और अंततः 14 दिसंबर 2017 को दुनिया को अलविदा कह दिया। आइए, नीरज वोरा के जीवन और उनके फिल्मी सफर पर एक विस्तृत नजर डालते हैं।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा (Early Life and Inspiration)

नीरज वोरा का जन्म 22 जनवरी 1963 को गुजरात के भुज में एक गुजराती परिवार में हुआ था। हालांकि, उनका बचपन मुंबई के उपनगर सांताक्रूज में बीता। उनके पिता, पंडित विनायक राय नानालाल वोरा, एक शास्त्रीय संगीतकार थे और तार-शहनाई के प्रतिपादक थे। उन्होंने तार-शहनाई को शास्त्रीय संगीत के लिए एक एकल वाद्य यंत्र के रूप में लोकप्रिय बनाया।

बचपन में नीरज को बॉलीवुड फिल्में देखने की ज़्यादा आज़ादी नहीं थी। एक शास्त्रीय संगीतकार के परिवार से होने के कारण, फिल्मी संगीत सुनना और फिल्में देखना वर्जित था। लेकिन उनकी मां, प्रेमिला बेन, को फिल्मों का जबरदस्त शौक था, और वह चुपके से अपने बेटे नीरज को फिल्में दिखाने ले जाती थीं। वोरा ने मुंबई के खार स्थित प्रसिद्ध प्युपिल्स ओन स्कूल में पढ़ाई की। फाल्गुनी पाठक और टीना मुनीम जैसी कई प्रसिद्ध हस्तियां इस स्कूल में उनकी सहपाठी थीं।

उनके स्कूल के कई छात्र उनके पिता द्वारा संचालित संगीत कोचिंग कक्षाओं में जाते थे, जो शास्त्रीय भारतीय संगीत सिखाने पर जोर देते थे, जबकि नीरज चुपके से उन्हें हारमोनियम पर बॉलीवुड गाने बजाना सिखाते थे। इससे नीरज स्कूल में बहुत लोकप्रिय हो गए। सौभाग्य से, कई गुजराती नाटक के दिग्गज उनके पिता के काम को जानते थे और उन्हें व्यक्तिगत रूप से पहचानते थे, जिसके बाद उनका झुकाव गुजराती थिएटर की ओर हुआ। थिएटर के प्रति उनका प्रेम 6 साल की उम्र में शुरू हुआ, और जब उनके पिता को 13 साल की उम्र में इसका पता चला, तो उन्होंने वोरा का समर्थन किया और उन्हें अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए कहा।

अभिनय की शुरुआत (The Beginning of an Acting Career)

अपने कॉलेज के दिनों में, उन्होंने एक अभिनेता के रूप में पेशेवर रूप से काम करना शुरू कर दिया और उन्हें नाटक के लिए अंतर-कॉलेजिएट पुरस्कार मिले। 1984 में, उन्होंने केतन मेहता की फिल्म ‘होली’ में काम किया और बाद में ‘छोटी बड़ी बातें’ और ‘सर्कस’ जैसे टेलीविजन शो किए।

बाद में उन्होंने ‘रंगीला’ में भी एक अभिनेता के रूप में काम किया, क्योंकि फिल्म निर्देशक सेट को गिराना चाहते थे और मुख्य अभिनेता अनुपस्थित थे। नीरज वोरा, जिन्होंने पटकथा लिखी थी, ने शूटिंग पूरी करने के लिए भूमिका निभाई। उस दृश्य को देखने के बाद, अनिल कपूर और प्रियदर्शन ने उन्हें ‘विरासत’ के लिए बुलाया, जिसके बाद आमिर खान ने ‘मन’ और कई अन्य परियोजनाओं के लिए संपर्क किया।

नाट्य लेखन और निर्देशन (Dramatic Writing and Direction)

उनका 1992 का गुजराती नाटक ‘अफलातून’, जो एक सुपरहिट था, को रोहित शेट्टी ने ‘गोलमाल’ के लिए रूपांतरित किया था। यह नाटक नीरज वोरा द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया था। यह उनकी रचनात्मक दृष्टि और हास्य की गहरी समझ का प्रमाण था, जिसने बाद में उनकी कई हिंदी फिल्मों की सफलता की नींव रखी।

लेखन का सुनहरा दौर (The Golden Era of Writing)

1993 में ‘सर्कस’ के बाद, नीरज वोरा, आशुतोष गोवारिकर और दीपक तिजोरी ने मिलकर ‘पहला नशा’ बनाई, जिसमें दीपक तिजोरी मुख्य भूमिका में थे। नीरज वोरा लेखक थे और उन्होंने अपने भाई के साथ नीरज-उत्तरांक के रूप में संगीत भी दिया था। बाद में उनके लेखन करियर ने उड़ान भरी जब उन्होंने ‘रंगीला’ के लिए लिखा और फिर ‘अकेले हम अकेले तुम’, ‘जोश’, ‘बादशाह’, ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’, ‘आवारा पागल दीवाना’, ‘दीवाने हुए पागल’, ‘अजनबी’, ‘हेरा फेरी’ और ‘फिर हेरा फेरी’ जैसी कई अन्य फिल्मों के लिए लिखा। वोरा के काम को हमेशा आलोचकों द्वारा सराहा गया है। ‘फिर हेरा फेरी’ के लिए, फिल्म समीक्षक तरण आदर्श ने कहा था: “वोरा के संवाद, हमेशा की तरह, उत्कृष्ट हैं!” उनकी कलम में वो जादू था जो आम बोलचाल की भाषा को भी हास्य और भावनाओं से भर देता था, जिससे किरदार और कहानियां दर्शकों के दिलों में बस जाती थीं।

निर्देशन में कदम (Stepping into Direction)

उन्होंने सबसे पहले ‘खिलाड़ी 420’ का निर्देशन किया, जो बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। इसके बाद उन्होंने फिल्में बनाने का फैसला किया और ‘फैमिलीवाला’ शुरू की। फिरोज नाडियाडवाला के लिए ‘आवारा पागल दीवाना’ और ‘दीवाने हुए पागल’ लिखने के बाद, उन्होंने ‘फिर हेरा फेरी’ के लिए सहयोग किया, जिसे सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित किया जाना था, लेकिन तारीखों की समस्याओं के बाद, नीरज वोरा को इसे निर्देशित करने का मौका मिला। ‘फिर हेरा फेरी’ एक बड़ी व्यावसायिक सफलता साबित हुई और इसने निर्देशक के रूप में भी उनकी साख स्थापित की।

‘हेरा फेरी 3’ और दुर्भाग्यपूर्ण बीमारी (Hera Pheri 3 and Unfortunate Illness)

वोरा को ‘हेरा फेरी 3’ का निर्देशन करना था, लेकिन अभिनेताओं जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन और सुनील शेट्टी के वोरा के साथ मतभेदों के कारण चले जाने के बाद अंततः अहमद खान ने उनकी जगह ले ली। वोरा को फिल्म के कार्यकारी निर्माता के रूप में बरकरार रखा गया था। अक्टूबर 2016 में उन्हें एक स्ट्रोक आया, जिसके कारण वह कोमा में चले गए। वह ‘हेरा फेरी 3’ पर काम कर रहे थे जब वह कोमा में गए। इस बीमारी ने उनके करियर पर एक दुखद विराम लगा दिया। निर्माता फिरोज नाडियाडवाला इस मुश्किल समय में उनके साथ खड़े रहे। नाडियाडवाला उन्हें अपने घर ले आए थे और एक कमरे को एक अस्थायी गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में बदल दिया था, जहाँ नीरज वोरा की देखभाल की जा रही थी।

एक प्रतिभा का असमय अंत (Untimely Demise of a Talent)

लंबे समय तक स्ट्रोक की जटिलताओं से जूझ रहे नीरज वोरा का 14 दिसंबर 2017 को 54 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अभिनेता-निर्देशक कथित तौर पर स्ट्रोक के बाद 13 महीने तक कोमा में रहे। उन्होंने कथित तौर पर सुबह 4 बजे मुंबई के अंधेरी स्थित क्रिटिकेयर अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई। कई हस्तियों ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया और उन्हें एक प्रतिभाशाली और जिंदादिल इंसान के रूप में याद किया।

नीरज वोरा की विरासत (Neeraj Vora’s Legacy)

नीरज वोरा भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में और उनके द्वारा लिखे गए किरदार आज भी दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। उन्होंने कॉमेडी फिल्मों को एक नई परिभाषा दी और कई यादगार फिल्में दीं जिन्हें आज भी क्लासिक माना जाता है। ‘हेरा फेरी’ जैसी फिल्म ने तो कॉमेडी की दुनिया में एक नया बेंचमार्क स्थापित किया। उनके संवाद आज भी लोगों की जुबान पर हैं। एक लेखक, निर्देशक और अभिनेता के रूप में उनका योगदान भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाएगा। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा और कड़ी मेहनत से किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है, लेकिन जीवन की अनिश्चितताएं कभी भी किसी भी मोड़ पर हमें चुनौती दे सकती हैं।

प्रमुख फिल्मोग्राफी (Selected Filmography):

  • निर्देशक के तौर पर (As Director):
    • खिलाड़ी 420 (2000)
    • फिर हेरा फेरी (2006)
    • शॉर्टकट: द कॉन इज़ ऑन (2009)
    • फैमिलीवाला (2009, अप्रकाशित रही)
    • रन भोला रन (अप्रकाशित)
  • लेखक के तौर पर (As Writer):
    • पहला नशा (1993)
    • बाज़ी (1995)
    • रंगीला (1995) (संवाद)
    • बादशाह (1999)
    • मेला (2000)
    • हेरा फेरी (2000)
    • जोश (2000)
    • चोरी चोरी चुपके चुपके (2001) (कहानी)
    • अजनबी (2001)
    • आवारा पागल दीवाना (2002) (संवाद)
    • हंगामा (2003) (संवाद)
    • गरम मसाला (2005) (संवाद)
    • गोलमाल: फन अनलिमिटेड (2006)
    • भागम भाग (2007)
    • भूल भुलैया (2007)
  • अभिनेता के तौर पर (As Actor):
    • होली (1984)
    • रंगीला (1995)
    • विरासत (1997)
    • मन (1999)
    • हैलो ब्रदर (1999)
    • बादशाह (1999)
    • खट्टा मीठा (2010)
    • बोल बच्चन (2012)
    • वेलकम बैक (2015)

नीरज वोरा का फिल्मी सफर प्रेरणा और प्रतिभा का एक अनूठा मिश्रण था। उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों का मनोरंजन किया और बॉलीवुड को कई यादगार फिल्में दीं। उनका असमय निधन फिल्म उद्योग के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी कला उनके प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी। हंसी के पीछे अपने दर्द को छिपाकर दूसरों को हंसाने वाले इस ‘खिलाड़ी’ को हमेशा याद किया जाएगा।

आप नीरज वोरा की किस फिल्म या किरदार को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं? हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।

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